मलकापूर की दिल दहलाने वाली घटना और आज़ाद पठान की पुकार: "खामोशी नहीं, ये बुज़दिली है!"
6 जून 2025, महाराष्ट्र के बुलढाणा ज़िले का शांत और मेहनतकश शहर मलकापूर उस वक्त दहल उठा जब भर चौक पर एक मुस्लिम युवक को दिनदहाड़े तीन लोगों ने लोखंडी रॉड से पीट-पीट कर लहूलुहान कर दिया। भीड़ तमाशबीन बनी रही, और ज़ुल्म का यह मंजर मोबाइल कैमरों में कैद होता रहा।
इस घटना ने ना केवल कानून व्यवस्था की पोल खोली, बल्कि समाज की संवेदनहीनता पर भी गहरा सवाल खड़ा कर दिया। लेकिन सबसे अफ़सोसनाक और शर्मनाक बात यह रही कि इस बर्बर हमले के बाद, जिन लोगों से समाज को उम्मीद थी — वे तथाकथित मुस्लिम नेता, सामाजिक ठेकेदार और राजनीति करने वाले— सबने खामोशी की चादर ओढ़ ली।
"यह खामोशी नहीं, यह बुज़दिली है" — आज़ाद पठान का तीखा प्रहार
युवा जिल्हा अध्यक्ष आज़ाद पठान, जो अपनी स्पष्टवादिता, सामाजिक सक्रियता और युवा नेतृत्व के लिए जाने जाते हैं, उन्होंने इस पूरी घटना पर भावनात्मक और सटीक प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा:
> "एक मजलूम के साथ खड़े होने की हिम्मत नहीं है, तो ऐसी राजनीति का क्या फायदा? सिर्फ चुनाव के वक्त मुसलमानों की भीड़ इकट्ठा करना और वोट बैंक बनाना ही राजनीति नहीं है। जब ज़ुल्म हो रहा है, तब आवाज़ उठाना ही असली लीडरशिप है।"
आज़ाद पठान ने सीधे शब्दों में कहा कि जो लोग खुद को मुस्लिम समाज के नेता कहते हैं, उन्होंने इस घटना पर चुप रहकर अपने असली चेहरे दिखा दिए हैं।
नेता या व्यापारी?
यह सवाल अब मुस्लिम समाज के हर जागरूक व्यक्ति के दिल में उठ रहा है — क्या ये नेता हैं या समाज के दर्द पर राजनीति करने वाले व्यापारी?
मस्जिदों के मंच से, राजनीतिक रैलियों से, और त्योहारों के मौकों पर भाषण देने वाले ये लोग जब एक निर्दोष मुस्लिम युवक पर हमला होता है, तब अपने AC दफ्तरों से बाहर नहीं निकलते।
आज़ाद पठान ने इसे "राजनीति की गंदी चाल" बताया और कहा:
> "अगर किसी में ज़ालिम को सलाखों के पीछे डालने की औकात नहीं है, तो उसे राजनीति छोड़ देनी चाहिए। समाज अब जाग चुका है, अब झूठी हमदर्दी और फोटो खिंचवाने से काम नहीं चलेगा।"
भीड़ की चुप्पी — एक और अपराध
इस घटना का एक और डरावना पहलू था — भीड़ की चुप्पी।
जब एक युवक को बीच चौक में लोखंडी रॉड से मारा जा रहा था, लोग वीडियो बना रहे थे, लेकिन कोई सामने नहीं आया। क्या हमारी इंसानियत मर चुकी है?
इस पर आज़ाद पठान ने कहा:
> "अगर आज तुम एक मजलूम के लिए नहीं उठे, तो कल तुम्हारे लिए भी कोई नहीं उठेगा। हम सबको अपने अंदर झांकने की ज़रूरत है।"
अब वक्त है बदलाव का
आज़ाद पठान की यह भावुक, आक्रोशपूर्ण लेकिन सच्ची आवाज़ अब सिर्फ एक युवक की नहीं, बल्कि पूरे मुस्लिम समाज के आत्मसम्मान की पुकार बन चुकी है।
उनकी अपील है:
मुस्लिम समाज के युवा अब खुद आगे आएं।
हर अत्याचार के खिलाफ संगठित होकर आवाज़ बुलंद करें।
समाज को बेचने वाले, मौकापरस्त नेताओं को पहचानें और असली नेतृत्व को मौका दें।
निष्कर्ष: एक सवाल हम सभी से
> "क्या हम सिर्फ सहने के लिए बने हैं?"
"क्या हम हर बार किसी लीडर के बयान का इंतजार करेंगे या खुद खड़े होंगे?"
मलकापूर की यह घटना एक चेतावनी है — अगर हम आज भी नहीं जगे, तो आने वाला कल और भी भयावह हो सकता है।
आज़ाद पठान जैसे युवा नेता हमें यह याद दिला रहे हैं कि मुस्लिम समाज को अब मजबूरी से नहीं, मज़बूती से जीना होगा।

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