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ब्लैकमेल करने वाले पत्रकार की खामोशी - एक सच्चाई जो सबके सामने आणि चाहिए.

 लेखीका - उमाताई बोचरे समाजसेविका.

कभी खुद को ईमानदार, ईज्जतदार और सच का ठेकेदार कहने वाला तथाकथित पत्रकार चांदुर बिस्वा, आज क्यों खामोश है?


जिसने मुझ पर झूठे और बेबुनियाद आरोप लगाकर मेरी छवि को धूमिल करने की कोशिश की, जो मुझे वीडियो और फोटो के नाम पर ब्लैकमेल करने की धमकी दे रहा था, वही अब खुद सवालों से भाग रहा है। क्या यही होती है पत्रकारिता? क्या इसी का नाम है सत्य की लड़ाई?


एक दलाल की हकीकत


चांदुर बिस्वा जैसा व्यक्ति, जिसने अपने लाभ के लिए पत्रकारिता को धंधा बना दिया, आज खुद के झूठ में फंस चुका है।


जो दूसरों को बदनाम करने की धमकी देता है


जो ब्लैकमेल कर के चुप कराने की कोशिश करता है


और फिर खुद ही जब सच्चाई सामने आने लगे, तो चुप्पी साध लेता है


तो सवाल उठता है –

"अगर तुम सच में सही थे, तो आज भाग क्यों रहे हो?"

"अगर तुम्हारे पास कुछ सच्चाई थी, तो उसे सामने क्यों नहीं ला रहे?"


समाज को जागरूक होना होगा


आज के दौर में कई ऐसे नकली पत्रकार सामने आ रहे हैं जो मीडिया की आड़ में दलाली, ब्लैकमेलिंग और निजी फायदे की राजनीति कर रहे हैं। ऐसे लोगों को पहचानना और उनका विरोध करना ज़रूरी है। अगर हम आज नहीं बोले, तो कल कोई और इसकी शिकार हो सकता है।


मैं डट कर खड़ी हू। न झूठ से डरूंगी, न किसी ब्लैकमेल से झुकूंगी।

सच अगर साथ हो, तो लाख झूठ मिलकर भी हारते हैं।

उमा बोचरे समाजवादी पार्टी महिला जिल्हाध्यक्षा

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